पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/२२०

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यह सार्वजनिक सत्ता बहुत महत्त्वहीन और नहीं के बराबर हो सकती है। संयुक्त राज्य अमरीका के कुछ हिस्सो में किसी समय ऐसी ही हालत पायी जाती थी। परन्तु जैसे-जैसे राज्य के अदर वर्ग-विरोध उग्र होते जाते हैं और जैसे-जैसे पडोस के राज्य विशाल होते जाते है और उनकी प्राबादी बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे यह सार्वजनिक सत्ता भी मजबूत होती जाती है। इसके लिये हमारे वर्तमान काल के यूरोप पर एक नज़र डाल लेना काफी है, जहा वर्ग-संघर्प तथा देश-विजय की होड़ ने इस सार्वजनिक सत्ता को ऐसा विराट रूप दे डाला है कि वह पूरे समाज को और स्वयं राज्य को निगल जाना चाहती है। इस सार्थजनिक सत्ता को कायम रखने के लिये नागरिकों से पैसा - कर वसूल करना आवश्यक हो जाता है। गोन-समाज करो से सर्वथा अपरिचित था, परन्तु हमारा उनसे आज काफ़ी परिचय हो चुका है। जैसे-जैसे सभ्यता आगे बढती जाती है, वैसे-वैसे ये कर नाकाफी होते जाते है, तब राज्य भविष्य को दाव पर लगाता है , उधार लेता है। इस तरह सार्वजनिक कों का श्रीगणेश हुआ। बूढा यूरोप इनके बारे मे भी एक पूरी कहानी सुना सकता है। सार्वजनिक सत्ता तथा कर लगाने और वसूल करने के अधिकार को पने हाथ में लेकर राज्याधिकारी अब समाज के अवयव के रूप में, समाज के ऊपर हो जाते है । गोन्न-समाज के अधिकारियो को स्वेच्छा से और स्वतंत्र रूप से जो सम्मान दिया जाता था, वह इन अधिकारियो को मिल भी जाता, तो वे उससे संतुष्ट नहीं होते। एक ऐसी सत्ता के वाहक होने के नाते , जो समाज के लिए परायी है , यह जरूरी हो जाता है कि असाधारण कानून बनाकर जो उनको एक विशेष प्रकार की पवित्रता और मलध्यता प्रदान करते हो, लोगो को उनका सम्मान करने के लिए मजबूर किया जाये। सभ्य राज्य के अदना से अदना पुलिस कर्मचारी को जितनी मिली होती है, उतनी गोत्र-समाज की तमाम संस्थानों को मिलाकर नही मिली थी। परन्तु गोत्र-समाज के छोटे से छोटे मुखिया को बिना किसी दबाव के और निर्विवाद रूप से जो सम्मान मिलता या, उम पर सभ्यता के युग के सबसे अधिक शक्तिशाली राजा और बड़े से बड़े राजनीतिज्ञ या सेनापति ईर्ष्या कर सकते है। एक समाज के बीच रहता है, दूसरा अपने को ममाज से बाहर और समाज से आर दिखाने की कोशिश करने के लिये बाध्य है। 11 'प्रतिष्ठा" २२०