यूथ-विवाह, है जो उमके चंगुल में फंस जाती है, और इन स्त्रियो का भी उतना पतन आवश्यकता तथा उमका ढंग , केवल उसी समय पूरी स्पष्टता के साथ हमारे सामने आयेंगे , जव पुरुप और नारी कानून की नजर मे बिलकुन समान हो जायेंगे। तभी जाकर यह बात साफ होगी कि स्त्रियो को मुक्ति की पहली शर्त यह है कि पूरी नारी जाति फिर से सार्वजनिक श्रम में प्रवेश करे, और इसके लिये यह आवश्यक है कि समाज की आर्थिक इकाई होने का वैयक्तिक परिवार का गुण नष्ट कर दिया जाये। इस प्रकार, मोटे तौर पर मानव विकास के तीन मुख्य युगो के अनुरूप, हमे विवाह के भी तीन मुख्य रूप मिलते है : 'जांगल युग मे बर्बर युग मे युग्म-विवाह और सभ्यता के युग में एकनिष्ठ विवाह और उसके साथ जड़ा हुआ व्यभिचार तथा वेश्यावृत्ति । बर्बर युग की उन्नत अवस्था मे , युग्म-परिवार तथा एकनिष्ठ विवाह के बीच के दौर में, हम दासियो पर पुरुपो का आधिपत्य , और बहुपत्नीत्व पाते है। जैसा कि हमारे पूरे वर्णन से प्रकट होता है कि इस क्रम मे जो प्रगति होती है, उसके साथ यह खास बात जुड़ी हुई है कि स्त्रियो से तो यूय विवाह के काल की यौन-स्वतंत्रता अधिकाधिक छिनती जाती है, पर से नही छिनती। पुरुषों के लिये तो, वास्तव मे, आज भी यूथ-विवाह प्रचलित है। नारी के लिये जो बात एक ऐसा अपराध समझी जाती है जिसका भयानक सामाजिक और कानूनी परिणाम होता है, वही पुरष के लिये एक सम्मानप्रद बात , या अधिक से अधिक एक मामली-सा नैतिक धब्बा समझा जाता है जिसे वह खुशी से सहन करता है। पुराने परम्परागत हैटेरिज्म को, माल का वर्तमान पूजीवादी उत्पादन जितना ही वदलता और अपने रंग मे ढालता जाता है, यानी जितना ही वह खुली वेश्यावृत्ति मे परिणत होती जाती है, उतना ही समाज पर उसका अधिक खराब असर पड़ता है। और वह स्त्रियो से ज्यादा पुरुषो पर खराव असर डालती है। स्त्रियो में वेश्यावृत्ति केवल उन्ही अभागिनो को पतन के गढे मे धकेलती पुरुषो नही होता जितना आम तौर पर समझा जाता है। परन्तु दूसरी भोर, वेश्यावृत्ति सारे पुरप संसार के चरित्र को विगाड़ देती है। और इस प्रकार, दम मे से नौ उदाहरणो मे, विवाह के पहले मंगाई की लंबी अवधि कार्यतः दाम्पत्य वेवफाई की ट्रेनिंग की अवधि बन जाती है। ६४
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