पृष्ठ:परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति.djvu/९४

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थी। जाहिर है कि तब भी व्यक्तिगत सौन्दर्य, अंतरंग साहचर्य, समान रुचि, आदि से नारी और पुरुष मे परस्पर सम्भोग की इच्छा उत्पन्न होती थी, और उस वक्त भी नर-नारी इस प्रश्न की ओर से बिलकुल उदासीन काल मे शादिया बराबर माता-पिता की इच्छा से होती थी; लड़के-लडनी थोड़ा-बहुत देखने में आता था, वह मनोगत प्रवृत्ति नहीं, वरन् वस्तुगत सागम ने जिन गरियो के प्रेम के गीत गाये है और जिनके 'विरह-मिनन पालन करेगा, चाहे वे विवाहित की सन्तान हों या अविवाहित की। इस प्रकार, आजकल सबसे ज्यादा जो बात किसी लड़की को उस पुरुष के सामने स्वतन्त्रतापूर्वक प्रात्मसमर्पण करने से रोकती है, जिसे वह प्यार करती है, यानी यह चिन्ता कि “इसका परिणाम क्या होगा" और जो ऐसे मामलों के लिये वर्तमान समाज में सबसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक वात-नैतिक व आर्थिक दोनी ही- बन जाती है, वह चिन्ता तब बिलकुल नहीं रहेगी। प्रश्न उठ सकता है कि तब क्या इस बात के लिये काफ़ी आधार नही तैयार हो जायेगा कि धीरे-धीरे अनियंत्रित यौन-व्यापार बढ़ने लगे और उसके साथ- साथ कौमार्य-रक्षा, नारी-कलंक आदि के बारे में जनमत अधिक उदार हो जाये? और अन्तिम बात यह कि क्या हम ऊपर यह नही देख चुके हैं कि आधुनिक संसार मे एकनिष्ठ विवाह और वेश्यावृत्ति एक दूसरे को उल्टो वस्तुएं होते हुए भी, एक ही सामाजिक परिस्थिति के दो छोर मात्र है और इसलिये एक दूसरे से अलग नहीं किये जा सकते ? क्या यह सम्भव है कि वेश्यावृत्ति तो मिट जाये , पर वह अपने साथ एकनिष्ठ विवाह को न लेती जाये? यहा एक नया तत्त्व काम करने लगता है। यह एक ऐसा तत्त्व है जो एकनिष्ट विवाह के विकसित होने के समय यदि था तो केवल बीज-रूप में ही था। हमारा मतलब व्यक्तिगत यौन-प्रेम से है। मध्य-युग के पहले व्यक्तिगत यौन-प्रेम जैसी कोई वस्तु ससार में नहीं नही थे कि वे किस व्यक्ति के साथ यह सबसे अंतरंग सम्बन्ध स्थापित करते है। परन्तु उसमे और हमारे काल के यौन-प्रेम में बहुत अन्तर था। प्राचीन घुपचाप उन्हे मान लेते थे। प्राचीन काल में पति-पत्नी के बीच जो प्रेम फर्तव्य था, वह विवाह का कारण नही, उसका पूरक था। में प्रेम-व्यापार प्राचीन काल में केवल अधिकृत ममाज से बाहर ही घटित होता पा। थियोजिटम और मोमकम ने, या 'डाफनिम और क्लोए' मे" प्रयं माधुनिक