पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१०

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परीक्षा गुरु
 


हैं जी चाहता है कि कारीगर के हाथ चूम लूँ ” मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा.


“इनके बिना आपका इस समय कौन सा काम अटक रहा है ?” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “खेल तमाशे की चीज़ों से भोले-भाले आदमियों का जी ललचाता है वह सौदागर की सब दुकान को अपने घर ले जाना चाहते हैं परन्तु बुद्धिमान अपनी जरूरी चीजों के सिवाय किसी पर दिल नहीं दौड़ाते” लाला ब्रजकिशोर बोले


“जरूरत भी तो अपनी, अपनी रुचि के समान अलग, अलग होती है ” मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा.


"और जब दरिद्रियों की तरह धनवान भी अपनी रुचि के समान काम न कर सकें तो फिर धनी और दरिद्रियों में अन्तर ही क्या रहा । ?” मास्टर शिंभूदयाल ने पूछा

"नामुनसिब काम करके कोई नुक्सान से नहीं बच सकता।

"धनी दरिद्री सकल जन हैं जग के अधीन । चाहत धनी विशेष कई तासों से अति दीन ॥"

लाला ब्रजकिशोर कहने लगे "मुनासिब रीति से थोड़े ख़र्च में सब तरह का सुख मिल सकता है परन्तु इन्तज़ाम और काम के सिलसिले बिना बड़ी से बड़ी दौलत भी जरूरी खर्चों को पूरी नहीं हो सकती जब थोथी बातों में बहुत-सा रुपया खर्च हो जाता है तो ज़रूरी काम के लिये पीछे से ज़रूर तक़लीफ़ उठानी पड़ती है।"


"चित्त की प्रसन्नता के लिये मनुष्य सब काम करते हैं फिर जिन चीजों के देखने से चित्त प्रसन्न हो उनका खरीदना थोथी बातों में कैसे समझा जाय ?” मुन्शी चुन्नीलालनें कहा.