पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/११

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सौदागर की दुकान
 

"चित्त प्रसन्न रखने की यह रीति नहीं है चित्त तो उचित व्यवहार से प्रसन्न रहता है ” लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.


"परंतु निरो फिलासफी की बातों से भी तो दुनियादारी का काम नहीं चल सकता।” लाला मदनमोहन ने दुनियादार बन कर कहा.


“बलायत की सब उन्नति का मूल लार्ड बेकन की यह नीति है कि केवल बिचार ही बिचार में मकड़ी के जाले न बनाओ आप परीक्षा करके हरेक पदार्थ का स्वभाव जानों” मिस्टर ब्राइट ने कहा.


"क्यों साहब! ये कांच कहां के बने हुए हैं ?” मुन्शी चन्नी- लाल ने सौदागर से पूछा.


"फ्रान्स के सिवाय ऐसी सुडोल चीज़ कहीं नहीं बन सकती. जब से ये कांच यहां आए हैं हर वक्त देखनवालों की भीड लगी रहती है और कई कारीगर तो इनका नक्शा भी खींच ले गए हैं।"


“अच्छा जी! इनकी कीमत हमारे हिसाब में लिखो और ये हमारे यहां भेज दो”


"मैंने एक हिन्दुस्थानी सौदागर की दुकान में इसी मेल के कांच देखे हैं उनके चोखटों में निस्सन्देह ऐसी कारीगरी नहीं है। परन्तु कीमत में वह इनसे बहुत ही सस्ते हैं ” लाला ब्रजकिशोर बोले.


"मैं तो अच्छी चीज़ का ग्राहक हूं चीज़ पसंद आये पीछे मुझको कीमत की कुछ परवाह नहीं रहती"


“अंग्रेजों की भी यही चाल है” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.