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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१२

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परीक्षा गुरु
 


"परन्तु सब बातों में अंग्रेजों की नकल करनी क्या जरूरी है ?” लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.


“देखिये! जबसे लाला साहब यह अमीरी चाल रखने लगे हैं लोगों में इनकी इज्जत कितनी बढ़ती जाती है” मास्टर शिंभूयाल ने कहा.


"सर-सामान से सच्ची इज्जत नहीं मिल सकती.सच्ची इज्जत तो लियाकत से मिलती है” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे. “और जब कोई मनुष्य बुद्धि के विपरीत इस रीति से इज्जत चाहता है तो उसका परिणाम बड़ा ही भयंकर होता है।”


"साहब! इतनी बात तो मैं हिम्मत से कहता हूं कि जो इस साथ की जोड़ी इस शहर में दूसरी जगह निकल आवेगी तो मैं ये कांच मुफ्त नज़र करूंगा" मिस्टर ब्राइट ने ज़ोर देकर कहा.


"कदाचित इस साथी जोड़ी दिल्ली भर में न होगी परन्तु कीमत की कमती-बढ़ती भी तो चीज़ की हैसियत के मुताबित होनी चाहिये" लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.


जिस तरह मोतियों के हिसाब में किसी दाने की तोल जरा ज्यादा होने से चौ बहुत ज्यादा बढ़ जाती है इसी तरह इन शीशों की कीमत का भी हाल है.मुझको लाला साहब से ज्यादा नफा लेना मंजूर न था इस वास्ते मैंने पहले ही असली कीमत में चार सौ रुपये कम कर दिये इसपर भी आपको कुछ सन्देह हो तो आप तीसरे पहर मास्टर साहब को यहां भेज दें मैं बीजक दिखला कर इन से कीमत ठैरा लूंगा”.


"अच्छा! मास्टर शिंभूदयाल मदरसे से लोटती बार आपके