पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११९
स्वतन्त्रता और स्वेच्छाचार
 

"तो क्या मैं हरकिशोर की जिद पर उसकी टोपियाँ ले लेता और दस बीस रुपये के वास्ते हरगोविंद को नीचा देखने देता? मैं हरगोविंद की भूल अपने ऊपर लेने को तैयार हो परंतु अपने आश्रितुओं की ऐसी बेइज्जती नहीं किया चाहता" लाला मदनमोहन ने ज़ोर देकर कहा.

“यह आपका झूठा पक्षपात है" लाला ब्रजकिशोर स्वतन्त्रता से कहने लगे "पापी आप पाप करने से ही नहीं होता. पापियों की सहायता करनेवाले, पापियों को उत्तेजना देने वाले बहुत प्रकार के पापी होते हैं; कोई अपने स्वार्थ, कोई अपराधी की मित्रता से, कोई औरों की शत्रुता से, कोई अपराधी के संबंधियों की दया से, कोई अपने निज के संबंध से, कोई खुशामद से, महान् अपराधियों का पक्ष करनेवाले बन जाते हैं, परंतु वह सब पापी समझे जाते हैं और वह प्रकट में चाहे जैसे धर्मात्मा, दयालु,कोमल चित्त हों, भीतर से वह भी बहुधा वैसे ही पापी और कुटिल होते हैं”

"तो क्या आपकी राय में किसी की सहायता नहीं करनी चाहिये?” लाला मदनमोहन ने तेज़ होकर पूछा.

"नहीं बुरे कामों के लिये बुरे आदमियों की सहायता कभी नहीं करनी चाहिये” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे. रशिया का शहन्शाह पीटर एक बार भरजवानी में ज्वर से मरने लायक हो गया था उस समय उसके वज़ीर ने पूछा कि "नो अपराधियों को अभी लूट, मार के कारण कठोर दंड दिया गया है क्या वह भी ईश्वर प्रार्थना के लिये छोड दिये जायें?" पीटर ने निर्बल आवाज से कहा "क्या तुम यह समझते हो कि इन अभागों को