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परीक्षागुरु.
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इन्साफ़ का साथ देना और हर तरह का स्वार्थ छोडकर सर्व साधारण के हित मैं तत्पर रहना मेरे जान सच्चा परोपकार हैं" लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.


प्रकरण १८.

क्षमा.

नरको भूषण रूप है रूपहुको गुणजान।
गुणको भूषण ज्ञान है क्षमा ज्ञान को मान ॥१॥
*[१]

सुभाषित रत्नाकरे.

"आप चाहे स्वार्थ समझैं चाहे पक्षपात समझैं हरकिशोर ने तो मुझे ऐसा चिड़ाया है कि मैं उस्सै बदला लिये बिना कभी नहीं रहूंगा" लाला मदनमोहन ने गुस्से सै कहा.

"उस्का कसूर क्या है? हरेक मनुष्य सै तीन तरह की हानि हो सक्ती है एक अपवाद करके दूसरे के यश मैं धब्बा लगाना, दूसरे शरीर की चोट, तीसरे माल का नुक्सान करना इन्में हरकिशोर ने आप की कौनसी हानि की?" लाला ब्रजकिशोर ने कहा.

लाला मदनमोहन के मन में यह बात निश्चय समा रही थी कि हरकिशोर ने कोई बड़ा भारी अपराध किया है परंतु ब्रजकिशोर ने तीन तरह के अपराध बताकर हरकिशोर का अपराध पूछा तब वह कुछ न बता सके क्योंकि मदनमोहन की वाक़फियत मैं ऐसा कोई अपराध हरकिशोर का न था. मदनमोहन

  1. *नरस्याभरणं रूपं रूपस्याभरणं गुणः॥
    गुणस्याभरणं ज्ञान ज्ञानस्थाभरणं क्षमा