दिन बढ़ता जाता है इससे मिस्टर ब्राइट को अपनी रकम का खटका है इसी लिये उसने इन कांचों का सौदा इस समय अटकाया है और तीसरे पहर मास्टर शिंभूदयाल को अपने पास बुलाया है.
"रुपया! ऐसी जल्दी!” लाला ब्रजकिशोर मिस्टर ब्राइट
को वहम में डालने के लिये आश्चर्य से इतनी बात कह कर मन में कहा” हाय! इन कारीगरों की निरर्थक चीजों के बदले हिन्दुस्थानी अपनी दौलत बृथा खोये देतेहैं”
"सच है पहले आप अपना हिसाब तैयार करायें उसको देख कर अंदाज से रुपये भेजे जाएंगे" मुन्शी चुन्नीलाल ने बात बनाकर कहा.
“और बहुत जल्दी हो तो बिल कर के काम चला लीजिये
जब तक कागज के घोड़े दौड़ते हैं रुपये की क्या कमी है?" ब्रजकिशोर बीच में बोल उठे.
“अच्छा! मैं हिसाब अभी उतरवाकर भेजता हूं मुझको
इस समय रुपये की बहुत ज़रूरत है" मिस्टर ब्राइट ने कहा.
"आपने साढ़े नौ बजे मिस्टर रसल को मुलाक़ात के लिये
बुलाया है इस वास्ते अब वहां चलना चाहिये” मिस्टर शिंभूदयाल ने याद दिलाई.
"अच्छा मिस्टर ब्राइट! इन काचों की याद रखना और
नया अस्बाब खुले जब हम को ज़रूर बुला लेना" यह कह कर लाला मदनमोहन ने मिस्टर ब्राइट से हाथ मिलाया और अपने साथियों समेत जोड़ी की एक निहायत उम्दा बलायती फिटन में सवार होकर रवाने हुए.