जब बग्गी कंपनी बाग में पहुंची तो सवेरे का सुहावना समय देखकर सब का जी हरा हो गया. उस समय की शीतल,मंद,सुगंधित हवा बहुत प्यारी लगती थी. वृक्षों पर हर तरह के पक्षी मीठे सुरों से चहचहा रहे थे! नहर के पानी की धीमी-धीमी आवाज़ कान को बहुत अच्छी मालूम होती थी! पन्ने सी हरी घास की भूमि पर मोती सी ओस की बूदें बिखेर रहीं थी! और तरह-तरह की फुलवाड़ी हरी मख़मल में रंग रंग के बूटों की तरह बड़ी बहार दिखा रही थी.इस स्वभाविक शोभा को देखकर लाला ब्रजकिशोर मदनमोहन से थोड़ी देर वहां ठहरने के वास्ते कहा.
इस समय मुंशी चुन्नीलाल ने जेब से निकालकर घडी में चाबी दी और घड़ी देखकर घबराट से कहा "ओ! हो! नौ पर बीस मिनिट चले गए तो अब मकान को जल्दी चलना चाहिये?"
निदान लाला मदनमोहन की बग्गी मकान पर पहुंची और
ब्रजकशोर उनसे रुखसत होकर अपने घर गए.
अप्रापति के दिनन मैं खर्च होत अबिचार
घर आवत है पाहुनो बणिज न लाभ लगार
वृंद
"हैं अभी तो यहाँ के घन्टे में पौने नौ ही बजे हैं तो क्या मेंरी घड़ी आधे घंटे आगे थी?" मुंशी चुन्नीलाल ने मकान पर पहुंच-