आजन्मसों अभिषेकलों मिथ्या प्रशंसा जनकरैं॥
बहु भांत अस्तुति गाय, गाय सराहि सिर स्हेरा धरैं॥
शिशुकालते सीखत सदा सजधज दिखावन लोक मैं॥
तिनको जगावत मृत्यु बहुतिक दिनगए इहलोक मैं॥
मिथ्या प्रशंसी बैठ घुटनन, जोड़कर, मुस्कावहीं॥
छलकी सुहाती बातकहि पापहि धरम दरसावहीं॥
छबिशालिनी, मृदुहासिनी अरुधनिक नितघेरै रहैं॥
झूंटी झलक दरसाय मनहि लुभाय कछु दिनमैं लहैं॥
जे हेम चित्रित रथन चढ़, चंचल तुरंग भजावहीं॥
सेना निरख अभिमानकर, यों व्यर्थ दिवस गमावहीं॥
'तिनकी दशा अबिलोक भाखत फेरहूं मनदुख लिये॥
नृपकी अधमगति देख 'करुणा होत अति मेरे हिये'॥"*[१]
"लाला साहब अपनें सरल स्वभाव से कुछ नहीं कहते इस वास्ते आप चाहे जो कहते चले जांय परन्तु कोई तेज़ स्वभाव का मनुष्य होता तो आप इक तरह हरग़िज न कहने पाते" मास्टर शिंभूदयाल ने अपनी ज़ात दिखाई.
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- I pity kings when worship waits upon,
Obsequious from the cradle to the throne;
Before whose infant eyes the fiatterer bows.
And binds a wreath about their baby brows;
Whom education stiffens into state,
And death awakens from that dream too late.
Oh! if servility with supple knees,
Whose trade it is to smile, to crouch, to please;
If smooth dissimulation, skill'd to grace,
A devil's purpose with an angel's face;
If smiling peeresses, and simp'ring peers,
Encompassing his throne a few short years;
If the gilt carriage, and the pamper'd steed,
That wants no driving, and disdains the lend;
If guards, mechanically form'd in ranks,
Playing, at beat of drum, their martial pranks,
Should'ring and standing as if stuck to stone,
While condescending majesty looks on—
If monarchy eonsist in such base things,
Sighing I say again, I pity kings,!
William Cowper.
- I pity kings when worship waits upon,