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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१४८

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परीक्षागुरु.
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बिचार छोड़ कर गुण संग्रह करनें पर दृष्टि रक्खैं. आपका वरताव अच्छा होगा तो मैं क्या हूं? बड़े, बड़े लायक़ आदमी आपको सहज मैं मिल जायँगे परन्तु आपका बरताव अच्छा न हुआ तो जो होंगे वह भी जाते रहेंगे. एक छोटेसे पखेरू की क्या है? जहां रात हो जाय वहीं उस्का रैन बसेरा हो सक्ता है. परन्तु वह फलदार वृक्ष सदा हरा भरा रहना चाहिये जिस्के आश्रय बहुत से पक्षी जीते हों"

"बहुत कहनें सै क्या है? आपको हमसै संबन्ध रखना हो तो हमारी मर्ज़ी के मूजिब बरताव रक्खो नहीं तो अपना रस्ता लो हमसै अब आपके तानें नहीं सहे जाते लाला मदनमोहन नें ब्रजकिशोर को नरम देख कर ज्यादः दबाने की तजबीज़ की.

"बहुत अच्छा! मैं जाता हूं बहुत लोग जाहरी इज्जत बनानें के लिये भीतरी इज्जत खो बैठते हैं परन्तु मैं उन्मैंका नहीं हू तुलसीकृतरामायण मैं रघुनाथजीने कहा है "जो हम निदरहि बिप्रबद्ध सत्यसुनहु भृगुनाथ॥ तो अस को जग सुभटतिहिं भय बस नावहिं मांथ॥" सोई प्रसंग इस्समय मेरे लिये बर्तमान है. एथेन्समैं जिन दिनों तीस अन्याइयोंकी कौन्सिल का अधिकार था एकबार कौन्‌सिलने सेक्रिटीज़ को बुलाकर हुक्मदिया कि तुम लिओं नामी धनवान को पकड़लाओ जिस्सै उस्का माल ज़प्त किया जाय" सेक्रिटीज़नें जबाब दिया कि "एक अनुचित काममैं मैं अपनी प्रसन्नतासै कभी सहायता न करूंगा" कौन्‌सिलके प्रेसिडन्टनें धमकी दी कि "तुम को आज्ञा उल्लंघन करनेके कारण कठोर दंड मिलेगा" सेक्रिटीज़नें कहा कि "यह तो मैं