पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१६१

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पतिब्रता.
 

मैं इन्का कहीं पता न लगेगा और ये बिचारे योंही झुर कर मर जायँगे?"

यह बात सुनकर ब्रजकिशोर की आंखें भर आईं थोड़ी देर कुछ नहीं बोला गया फिर चित्त स्थिर कर के कहनें लगे "तुम बहन सै कह देना कि मुझको अपना कर्तव्य अच्छी तरह याद है परन्तु क्या करूं? मैं विबस हूं काल की कुटिल गति सै मुझ को अपनें मनोर्थ के विपरीति आचरण (बरताव) करना पड़ता है तथापि वह चिन्ता न करे. ईश्वर का कोई काम भलाई सै ख़ाली नहीं होता उस्ने इस्मैं भी अपना कुछ न कुछ हित ही लोचा होगा" लड़कों की तरफ देखकर कहा "बेटे! तुम कुछ उदास मत हो जिस तरह सूर्य चन्द्रमा को ग्रहण लग जाता है इसी तरह निर्दोष मनुष्यों पर भी कभी, कभी अनायास विपत्ति आपड़ती है परंतु उस समय उन्हें अपनी निर्दोषता का विचार कर के मन मैं धैर्य रखना चाहिये"

उन अनसमझ बच्चों को इन बातों की कुछ परवा न थी बरफ़ी और खिलोनों के लालच सै उन्की नींद उड़ गई थी इस वास्तै वह तो हरेक चीज़ की उठाया धरी मैं लग रहे थे और ब्रजकिशोर पर तक़ाजा जारी था.

थोड़ी देर मैं बरफ़ी और खिलोनें भी आपहुंचे इस्समय उन्की खुशी की हद न रही. ब्रजकिशोर दोनों को बरफ़ी बांटा चाहते थे इतने मैं छोटा हाथ मार कर सब ले भागा और बड़ा उस्सै छीन्नें लगा तो सब की सब एकबार मुंह मैं रख गया. मुंह छोटा था इसलिये वह मुंह मैं नहीं समाती थी परन्तु यह खुशी भो कुछ थोडी न थी कनअंखियों से बड़े की तरफ़ देखकर