सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षा गुरु
१०
 

समेत वसूल हो गया, परंतु दूसरे साल रुई की भरती की जिसमें सात आठ हज़ार रुपये टूटते रहे इसका घाटा भरने के लिये पहले से दुगुनी नील बनवाई जिसमें एक तो परता कम बैठा दूसरे माल कलकते पहुंचा उस समय भाव मंदा रह गया जिसमें नफे के बदले दस-बारह हज़ार इसमें टूटते रहे.लाला मदनमोहन के लेन-देन से पहले मिस्टर रसल का लेन देन रामप्रसाद बनारसीदास से था। उनके आठ हजार रुपये अबतक इसकी तरफ़ बाक़ी थे.जब उनकी मर्याद जाने लगी तो उन्होंने नालिश करके साढ़े ग्यारह हजार की डिग्री इसपर करा ली.अब उनकी इजराय डिग्री में इसका सब कारखाना नीलाम पर चढ़ रहा है और नीलाम की तारीख में केवल चार दिन बाकी हैं इस लिये यह बड़े घबराहट में रुपये का बंदोबस्त करने के लिये लाला मदनमोहन के पास आया है.


"मेरे मिज़ाज का तो इस समय कोसों पता नहीं लगता परंतु उसको ठिकाने लाना आपके हाथ है" मिस्टर रसल ने मदनमोहन के कुशलप्रश्न ( मिज़ाजपुर्सी) पर कहा."जो आफ़त एकाएक इस समय मेरे सिर पर आ पड़ी है उसको आप अच्छी तरह जानते हैं. इस कठिन समय में आपके सिवाय मेरा सहायक कोई नहीं है. आप चाहें तो दम भर में मेरा बेड़ा पार लगा सकते हैं, नहीं तो मैं इस तूफान में ग़ारत हो चुका”


“आप इतने क्यों घबराते हैं ? ज़रा धीरज रखिये" मुन्शी चुन्नीलाल ने पहले की मिलावट के अनुसार सहारा लगाकर कहा.“लाला साहब के स्वभाव को आप अच्छी तरह जानते हैं जहां तक हो सकेगा यह आप की सहायता मै कभी कसर न करेंगे."