"पहले आप मुझे यह तो बताइये कि आप मुझसै किस तरह की सहायता चाहते हैं?" लाला मदनमोहन ने पूछा.
"मैं इस्समय सिर्फ इतनी सहायता चाहता हूं कि आप रामप्रसाद बनारसीदास की डिक्री का रुपया चुकादें मुझसै हो सकेगा जहां तक मैं आपका सब क़र्ज़ा एक बरस के भीतर चुका दूंगा" मिस्टर रसल ने कहा "मुझको अपनी बरबादी का इतना खयाल नहीं है जितनी आपके कर्जे़ की चिन्ता है. रामप्रसाद बनारसीदास की डिक्रीमैं मेरी जायदाद बिक गई तो और लेनदार कोरे रह जायंगे और मैंनें इन्सालवन्ट होने की दरखास्त की तो आप लोगों के पल्ले रुपे मैं चार आनें भी न पड़ेंगे"
"अफ़सोस! आपकी यह हक़ीक़त सुन् कर मेरा दिल आप सै आप उम्ड़ा आता है" लाला मदनमोहन बोले.
"सच है महा कवि शेक्सपीअर ने कहा है" मास्टर शिंभूदयाल कहने लगे:—
"कोमल मन होत न किये होत प्रकृति अनुसार।
जों पृथवी हित गगन ते वारिद द्रवति फुहार॥
वारिद द्रवित फुहार द्रवहि मन कोमलताई।
लेत, देत शुभ हेत दोउनको मन हरषाई॥
सब गुनते उतकृष्ट सकल बैभव को भूषन।
राजहु ते कछु अधिक देत शोभा कोमलमन॥"॥[१]
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The quality of mercy is not strained.
It droppeth as the gentle rain from heaven
Upon the place beneath, it is twice. blessed
It blesseth him that gives, and him that takes.
'Tis mightiest in the mightiest. it becomes
The throned monarch better than his crownWilliam Shakespeare