पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षागुरु.
१९४
 

मिल्ते परन्तु मुझ को चुन्नीलाल की समझ पर बड़ा अफ़सोस आता है की उस्नें आप जैसे प्रतिपालक के छोड़ जानें की ढिठाई की. अब वह अपनें किये का फल पावेगा तब उस्की आखें खुलेंगी"

"मैं उस्के किसी, किसी काम को निस्सन्देह नापसन्द करता हूं परन्तु यह सर्बथा नहीं चाहता कि उस्को किसी तरह का दुःख हो"

"यह आप की दयालुता है परन्तु कार्य कारण के सम्बन्ध को आप कैसे रोक सक्ते हैं? आज लाला मदनमोहन पर तकाज़ा होगया. जो ये लोग आप का उपदेश मान्ते तो ऐसा क्यों होता?"

"हाय! हाय! तुम यह क्या कहते हो? मदनमोहन पर तकाज़ा होगया! तुमनें यह बात किस्सै सुनी? मैं चाहता हूं कि परमेश्वर करे यह बात झूंट निकले" लाला ब्रजकिशोर इतनी बात कह कर दुःख सागर मैं डूब गए उन्के शरीर मैं बिजली का सा एक झटका लगा, आखों मैं आंसू भर आए, हाथ पांव शिथिल होगए. मदनमोहन के आचरण सै बड़े दुःख के साथ वह यह परिणाम पहले ही समझ रहे थे इस लिये उन्को उस्का जितना दुःख होना चाहिये पहले होचुका था तथापि उन्को ऐसी जल्दी इस दुखदाई ख़बर के सुन्नें की सर्बथा आशा न थी इस लिये यह ख़बर सुन्ते ही उन्का जी एक साथ उमड आया परन्तु वह थोड़ी देर मैं अपनें चित्तका समाधान करके कहनें लगेः—

"हा! कल क्या था! आज क्या होगया!! शृंगाररसका सुहावनां समां एका एक करुणा सै बदलगया! बेलजिअम की