पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९५
लोक चर्चा (अफ़वाह).
 

राजधानी ब्रसेलस पर नैपोलियन नें चढाई कीथी उस्समय की दुर्दशा इस्समय याद आती है, लार्डबायरन लिखता है:—

"निशि मैं बरसेलस गाजि रह्यो॥
बल, रूप बढाय विराजि रह्यो
अति रूपवती युक्ती दरसैं॥
बलवान सुजान जवान लसैं
सब के मुख दीपनसों दमकैं॥
सब के हिय आनँद सों धमकैं
बहुभांति बिनोद प्रमोद करैं॥
मधुरे सुर गाय उमंग भरैं
जब रागन की मृदु तान उड़ैं॥
प्रियप्रीतम नैनन सैन जुड़ैं
चहुंओर सुखी सुख छायरह्यो॥
जनु ब्याहन घंट निनाद भयो
पर मौनगहो! अबिलोक इतै!॥
यह होत भयानक शब्द कितै?
डरपौ जिन चंचल बायु बहै॥
अथवा रथ दौरत आवत है
प्रिय! नाचहु, नाचहु ना ठहरो॥
अपनें सुख की अवधी न करो
जब जोबन और उमंग मिलैं॥
सुख लुटन को दुहु दोर चलैं
तब नींद कहूं निशआवत है?॥
कुछ औरहु बात सुहावत है?