पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षागुरु.
२१४
 

वह तुम को घडी भर जीता न रहनें दे" मास्टर शिंभूदयाल नें कहा.

"मैं अपनें निज के सम्बन्ध का बिचार करके लाला साहब को कच्ची सलाह नही दे सक्ता” चुन्नीलाल खरे बनें.

"अच्छा तो अब क्या करें? ब्रजकिशोर को दूसरी चिट्ठी लिख भेजें या यहां बुलाकर उन्की खातिर कर दें?" निदान लाला मदनमोहन नें चुन्नीलाल की राह सै राह मिलाकर कहा.

"मेरे निकट तो आप को उन्के मकान पर चलना चाहिये और कोई कीमती चीज़ तोहफ़ा मैं देकर ऐसे प्रीति बढानी चाहिये जिस्सै उन्के मनमैं पहली गांठ बिल्कुल न रहै और आप के मुकद्दमों मैं सच्चे मन से पैरवी करें ऐसे अवसर पर उदारता सै बडा काम निकलता है. सादी ने कहा है "द्रब्य दीजिये बीर कों तासों दे वह सीस॥ प्राण बचावेगी सदा बिनपाये बखशीस॥" +[१] मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा.

"लाला साहब को ऐसी क्या गरज पड़ी है जो ब्रजकिशोर के घर जायं और कल जिसै बेइज्जत करके निकाल दिया था आज उस्की खुशामद करते फिरें?" मास्टर शिंभूदयाल बोले.

"असल मैं अपनी भूल है और अपनी भूलपर दूसरे को सताना बहुत अनुचित है" मुन्शी चुन्नीलाल संकेत सै शिंभूदयाल को धमकाकर कहनें लगा "बैठनें उठनें, और आनें जानें की साधारण बातोंपर अपनी प्रतिष्ठा, अप्रतिष्ठा का आधार समझना संसार मैं अपनी बराबर किसी को न गिन्ना, एक तरह का


  1. + ज़रविदह मर्दे सिपाहीरा तासर विदिहद॥
    बगरश जर नांदिही सर ननिहद दरआलम॥