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पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२२६

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परीक्षागुरु.
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भूल सै भेज दी गई थी इसलिये लाला साहब चलाकर यह बात कहनें आए हैं कि आप उस्का कुछ खयाल न करें" मुन्शी चुन्नीलाल नें कहा.

"जो बात भूल सै हो और वह भूल अंगीकार कर ली जाय तो फिर उस्में खयाल करनें की क्या बात है? और इस छोटेसे काम के वास्तै लाला साहब को परिश्रम उठाकर यहां आनें की क्या जरूरत थी?" लाला ब्रजकिशोर ने कहा.

"केवल इतना ही काम न था मुझ सै कल भी कुछ भूल हो गई थी और मैं उस्का भी एवज दिया चाहता था" यह कहकर लाला मदनमोहन ने एक बहुमूल्य पाकटचेन (जो थोडे दिन पहले हमल्टन कंपनी के हां सै फ़र्मायशी बनकर आई थी) अपनें हाथ सै ब्रजकिशोर की घड़ीमे लगा दी.

"जी! यह तो आप मुझ को लज्जित करते हैं मेरा एवज तो मुझ को आप के मुख सै यह बात सुन्त ही मिल चुका. मुझ को आपके कहने का कभी कुछ रंज नहीं होता इस्के सिवाय मुझे अवसर पर आप की कुछ सेवा करनी चाहिये थी सो मैं उल्टा आप से कैसे लूं? जिस मामले मैं आप अपनी भूल बताते हैं केवल आपही की भूल नहीं है आप सै बढ़कर मेरी भूल है और मैं उस्के लिये अंतःकरणसै क्षमा चाहता हूं" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "मैं हर बात मैं आप सै अपनी मर्जी मूजिब काम करानेके लिये आग्रह करता था परंतु वह मेरी बड़ी भूल थी. वृन्दनैं सच कहा है "सबको रसमै राखिये अंत लीजिये नाहिं॥ बिष निकस्यो अति मथनते रत्नाकरहू मांहिं॥" मुझको विकालतके कारण बढ़ाकर बात करनेंकी आदत पड़ गई है और