पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२२७

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बात चीत.
 

मैं कभी, कभी अपना मतलब समझानेके लिये हरेक बात इतनी बढ़ाकर कहता चला जाता हूं कि सुन्नें वाले उखता जाते हैं. मुझको उस अवसरपर जितनी बातें याद आती हैं मैं सब कह डालता हूँ परन्तु मैं जान्ता हूं कि यह रीति बात चीतके नियमों से विपरीति है और इन्का छोड़ना मुझ पर फ़र्ज़ है बल्कि इन्हें छोड़ने के लिये मैं कुछ, कुछ उद्योग भी कर रहा हूं"

"क्या बातचीत के भी कुछ नियम हैं?" लाला मदनमोहन नें आश्चर्य सै पूछा-

"हां! इस्को बुद्धीमानो नें बहुत अच्छी तरह वरणन किया है" लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे "सुलभा नाम तपस्विनी नें राजा जनक सै वचन के यह लक्षण कहे हैं अर्थ सहित, संशय रहित, पूर्वापर अविरोध॥ उचित, सरल, संक्षिप्त पुनि कहों वचन परिशोध॥१॥ प्राय कठिन अक्षर रहित, घृणा, अमंगल हीन॥ सत्य, काम, धर्मार्थयुत शुद्धनियम आधीन॥२॥ संभव कूट न अरुचिकर, सरस, युक्ति दरसाय॥ निष्कारण अक्षर रहित खंडितहू न लखाय॥३॥ *[१]" संसार मैं देखा जाता है कि कितने ही मनुष्यों को थोडीसी मामूली बातें याद होती हैं जिन्हें वह अदल


    • उपेतार्थ मभिन्नार्थं न्यायहत्तं न चाधिकं॥

    नाश्लक्षणं नचसंदिग्ध वक्ष्वामि परमंततः १॥
    नगुर्वक्षर संयुक्तं पराङ्मुख सुखंनच॥
    नानृतं नत्रिवर्गेण विरुद्धं नाप्यसंस्कृतम् २॥
    नन्धूनं कष्टशब्दंवा बिक्रमाभिहितंनच॥
    नशेषमनुकल्पेन निष्कारणमहेतुकम् ३॥