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परीक्षागुरु.
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बदलकर सदा सुनाया करते हैं जिस्से सुन्नेवाला थोडी देरमै उखता जाता है बातचीत करनें की उत्तम रीति यह है कि मनुष्य अपनी बातको मौकेसै पूरी करके उस्पर अपना अपना, बिचार प्रगट करनें के लिये औरोंको अवकाश दे और पीछेसै कोई नई चर्चा छेड़े. और किसी विषय मैं अपना विचार प्रगट करे तो उस्का कारण भी साथही समझाता जाय, कोई बात सुनी सुनाई होती वह भी स्पष्ट कहदे हँसीकी बातों मैं भी सचाई और गंभीरता को न छोड़े, कोई बात इतनी दूरतक खेंचकर न ले जाय जिस्सै सुन्नें वालों को थकान मालूम हो धर्म, दया, और प्रबन्ध की बातों मैं दिल्लगी न करे. दूसरेके मर्मकी बातोंको दिल्लगी मैं ज़बान पर न लाय. उचित अवसर पर वाजबी राह से पूछ पूछकर साधारण बातौं का जान लेना कुछ दूषित नहीं है परन्तु टेढ़े और निरर्थक प्रश्न करके लोगों को तंग करना अथवा बकवाद करके औरोंके प्राण खा जाना, बहुत बुरी आदत है. बातचीत करनें की तारीफ़ यह है कि सबका स्वभाव पहिचान कर इस ढबसै बात कहै जिस्मैं सब सुन्नें वाले प्रसन्न रहैं. जची हुई बात कहना मधुर भाषण सै बहुत बढ़कर है खासकर जहां मामलेकी बात करनी हो. शब्द बिन्यास के बदले सोच विचार कर बातचीत करना सदैव अच्छा समझा जाता है और सवाल जवाब बिना मेरी तरह लगातार बात कहते चले जाना कहने वाले की सुस्ती और अयोग्यता प्रगट करता है. इसी तरह असल मतलब पर आनें के लिये बहुतसी भूमिकाओं सै सुन्नें वालेका जी घबरा जाता है परन्तु थोड़ी सी भूमिका बिना भी बातकारंग नहीं जमता इसलिये अब मैं बहुतसी भूमिकाओं के बदले आप सै प्रयोजन