“हम यह नहीं जान सक्ते परंतु लाला साहब का हुक्म है कि वह लोग जो, जो सामान मांगें तत्काल दे दिया करो”
“अच्छा? वह हुक्म दिखाओ!”
ज० “वह हुक्म लिखकर नहीं दिया था जवानी है”
“अच्छा! वह हुक्म किस्के आगे दिया था―?” किस किसके लिये दिया था!” “कितनें दिन हुए?”-“!“कौन्सा समय था?” “कौन्सी जगह थी?” “क्या कहा था?”
“बहुत दिनकी बात है मुझको अच्छी तरह याद नहीं”
“अच्छा? जितनी बात याद हो वही बतलाओ?”
ज० “मैं इस्समय कुछ नहीं कह सक्ता”
“तो क्या किसीसै पूछकर कहोगे?”
ज० “जी नहीं याद करके कहुंगा”
“अच्छा! तुम्हारा हिसाब होकर बीच मैं बाकी निकल चुकी है?
ज० “नहीं”
“तो तुमनें सालकी साल बाक़ी निकालकर ब्याजपर व्याज कैसे लगा लिया?”
“साहूकारेका दस्तूर यही है,”
“साहूकारेमैं, तो सालकी साल हिसाब होकर ब्याज लगाया जाता है फिर तुमनें हिसाब क्यों नहीं किया?”
ज० “अवकाश नहीं मिला।”
“तुम्हारी बहियोंमैं उदत खाते से क्या मतलब है?”
“लाला मदनमोहनके लेन देन सिवाय आप और किसी खातेका सवाल न करें” निहालचंदके वकीलनें कहा.