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परीक्षागुरु.
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प्रकरण ३३.


मित्रपरीक्षा।

धन न भयेहू मित्रकी सज्जन करत सहाय॥
मित्र भाव जाचे बिना कैसे जान्यो जाय॥‡[१]

बिदुरप्रजागरे.

आज तो लाला ब्रजकिशोर की बातोंमैं लाला मदनमोहन की बात ही भूल गए थे!

लाला मदनमोहन के मकानपर वैसी ही सुस्ती छा रही है केवल मास्टर शिंभूदयाल और मुन्शी चुन्नीलाल आदि तीन, चार आदमी दिखाई देते हैं परन्तु उन्का भी होना न होना एकसा है वह भी अपनें निकासका रस्ता ढूंढ रहे हैं हम अबतक लाला मदनमोहनके बाकी मुसाहबोंकी पहचान करानें के लिये अबकाश देख रहे थे इतनेमैं उन्नें मदनमोहन का साथ छोड़कर अपनी पहिचान आप बतादी. हरगोबिन्द और पुरुषोत्तमदासनें भी कलसै सूरत नही दिखाई थी. बाबू बैजनाथ को बुलाने के लिये आदमी गया था परन्तु उन्हैं आनें का अवकाश न मिला लाला हरदयाल साहबके नाम कुछ दिन के लिये थोड़े रुपे हाथ उधार देनें को लिखा गया था परन्तु उन्का भी जवाब नहीं आया लाला मदनमोहन का ध्यान सबसै अधिक डाककी तरफ़ लग रहा था उन्को


  1. ‡ अर्चयेदैव मित्राणि सनिवासतिवा धर्ने
    नानर्थ यन् प्रजानाति मित्राणां सारफलगुतां॥