पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२४९

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मित्रपरीक्षा.
 

विश्वास था कि मित्रों की तरफ़सै अवश्य अवश्य सहायता मिलेगी बल्कि कोई, कोई तो तारकी मारफत रुपे भिजवायंगे.

"क्या करें? बुद्धि काम नहीं करती" मास्टर शिंभूदयालनें समय देखकर अपनें मतलब की बात छेड़ी "इन्हीं दिनोंमैं यहां काम है और इन्हीं दिनों मदरसे मैं लड़कोंका इमतहान है कल मुझको वहां पहुंचनें मैं पाव घण्टे की देर हो गई थी इस्पर हेड-मास्टर सिर होगए. वहां न जायं तो रोज़गार जाता है यहां न रहैं तो मन नहीं मान्ता (मदनमोहनसै) आप आज्ञा दें जैसा किया जाय?"

"ख़ैर? यहांका तो होना होगा सो हो रहैगा तुम अपना रोज़गार न खोओ" लाला मदनमोहननें रुखाई सै जवाब दिया.

क्या करूं? लाचार हूं" मास्टर शिंभूदयाल बोले "यहां आए बिना तो मन नहीं मानेंगा परन्तु हां कुछ कम आना होगा आठ पहर की हाजरी न सध सकेगी मेरी देह मदरसे मैं रहेगी परन्तु मेरा मन यहां लगा रहेगा"

"बल आपकी इतनी ही महरबानी बहुत है" लाला मदनमोहननें जोर देकर कहा.

निदान मास्टर शिंभूदयाल मदरसे जानें का समय बताकर रुख़सत हुए.

"आज निहालचन्दका मुकद्दमा है देखैं ब्रजकिशोर कैसी पैरवी करते हैं" मुन्शी चुन्नीलालनें कहा" कल आपके पाकटचेन देनेंसै उन्का मन बहुत बढ़गया परन्तु वह उसै अपनें महन्तानें मैं न समझैं मेरे निकट अब उन्का महन्ताना तत्काल भेज देना चाहिये जिस्सै उन्को यह संदेह न रहै और मन लगाकर अपनें