पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२५

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संगति का फल
 


उतर आते थे फिर पंडितजी कुंडली खेंचती बार किसी ढब से उसको देखकर थोड़ी देर पीछे बता देते थे.

"तो हुजूर! उस गंधी के वास्ते क्या हुक्म है?" हकीम जी ने फिर याद दिलाई.

"अत्र में चंदन के तेल की मिलावट मालूम होती है और मिलावट की चीज़ बेचने का सरकार से हुक्म नहीं है इस वास्ते कह दो शीशी जप्त हुई वह अपना रास्ता ले" पंडित जी शीशी सूंघ कर बीच में बोल उठे.

"हां हकीमजी! आपकी राय में उस गन्धी का कहना सच है?" लाला मदनमोहन ने पूछा.

"बेशक,अंदाज से तो ऐसा ही मालूम होता है आगे खुदा जाने" हकीम जी बोले.

“तो लो यह पच्चीस रुपये के नोट इस समय उसको खर्च के वास्ते दे दो.बिदा पीछे से सामने बुलाकर की जायगी” लाला मदनमोहन ने पच्चीस रुपये के नोट पाकिट से निकाल कर दिये.

“उदारता इसका नाम है” “दयालुता इसे कहते हैं” “सच्चे यश मिलने की यह राह है” “परमेश्वर इससे प्रसन्न होता है" चारों तरफ़ से वाह-वाह की बौछार होने लगी.

“ये बहियां मुलाहजे के वास्ते हाजिर हैं और बहुत-सी रकमों का जमाख़र्च आपके हुक्म बिना अटक रहा है जो अवकाश हो तो इसमय कुछ अर्ज करूँ?" लाला जवाहरलाल नें आते ही बस्ता आगे रख कर डरते-डरते कहा.

“लाला जवाहरलाल इतने बरस से काम करते हैं, परंतु लाला साहब की तबीयत और काग़ज़ दिखाने का मौका अब-