पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२५९

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हीनप्रभा (बदरोबी).
 

"तुमको इस्समय रुखसत का सवाल नहीं करना चाहिये मेरे सब कामों का आधार तुम पर है फिर तुम इस्समय धोका दे कर चले जाओगे तो काम कैसे चलेगा?" लाला मदनमोहनने कहा

"वाह! महाराज वाह! आपनें हमारी अच्छी कदर की!" मुन्शी चुन्नीलाल तेज होकर कहनें लगा "धोका आप देते हैं या हम देते हैं? हम लोग दिन रात आपकी सेवा मैं रहैं तो ब्याह शादी का खर्च लेनें कहां जाय? आपने अपनें मुख सै इस ब्याह मैं भली भांति सहायता करनें के लिये कितनी ही बार आज्ञा की थी, परन्तु आज वह सब आस टूट गई तो भी हमनें आपको कुछ ओलंभा नहीं दिया आप पर। कुछ बोझ नहीं डाला केवल अपनें कार्य निर्वाह के लिये कुछ दिन की रुख्सत चाही तो आपके निकट बड़ा अधर्म हुआ। खैर! जब आपके निकट हम धोकेबाज ही ठरे तो अब हमारे यहां रहने सै क्या फायदा है? यह आप अपनी तालियां लें और अपना अस्बाब सह्माल लें पीछे घटे बढ़ेगा तो मेरा जिम्मा नहीं है। मैं जाता हूं।" यह कह कर तालियोंका झुमका लाला मदनमोहनके आगे फेंक दिया और मदनमोहन के ठंडा करते करते क्रोध की सूरत बना कर तत्काल वहां सै चल खड़ा हुआ।

सच है नीच मनुष्य के जन्म भर पालन पोषण करने पर भी एक बार थोड़ी कमी रहजानें सै जन्म भर का किया कराया मट्टी में मिल जाता है. लोग कहते हैं कि अपनें प्रयोजन मैं किसी तरह का अन्तर आनें सै क्रोध उत्पन्न होता है अपनें काम मैं सहा-