पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/२६९

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स्तुति निन्दाका भेद.
 

“तुम लोग यह बहाना करके अपनें घर सै चोरी का माल दूर किया चाहते हो परन्तु मैं घड़ी का पता लगाये बिना तुम को कभी ढीला नहीं छोडूंगा, मैं अभी कोतवाली को रुक्का लिखता हूंं” यह कह कर लाला ब्रजकिशोर सचमुच रुक्का लिखनें लगे.

जिन लोगोंनें सवेरे मदनमोहन की बात पर कुछ ध्यान नहीं दिया था वही इसमय ब्रजकिशोर की ज़रा सी धमकी सै मदनमोहन के पांव पकड़ कर रोनें लगे. तुलसी दासजी नें सच कहा है “शूद्र गमार ढोल पशु नारी। सकल ताड़नाके अधिकारी॥"

“भाई! इन्को सांझ तक अवकाश दे दो जो तुम अब करना चाहते हो सांझ हो कर लेना" लाला मदनमोहन नें पिंगल कर अथवा किसी गुप्त कारण सै दब कर कहा.

"आप को किसीकी रिआयत हो तो आप निज मैं भले ही उन्को कुछ इनाम दे दैं परन्तु प्रबन्ध के कामों मैं इस तरह अपराधियों पर दया करके अपनें हाथ सै प्रबन्ध न बिगाड़ें ये लोग आपका क्या कर सक्ते हैं? मनुस्मृति मैं कहा है "दंड बिषै संभ्रम भये बर्ण दोष है जाय। मचै उपद्रव देश मैं सब मर्याद नसाय॥" * सादी कहते हैं “पापिन मांहि दया है ऐसी। सज्जन संग क्रूरता जैसी।" लाला ब्रजकिशोर ने कहा.

“खैर! कुछ हो आज का दिन तो इन्को छोड दीजिये” लाला मदनमोहन नें दबा कर कहा.


 * दुष्ये युः सर्दवर्णा भिद्देरन् सर्वसेतव:॥

सर्वलोकप्रकोपश्च भवेद्दण्डस्व विक्भभमात्॥

† निकोई बाबदा कर्दन् चुनानस्त की बदकर्दन बजाय नेकमदां॥