“बहुत अच्छा! जैसी आप की मर्जी" ब्रजकिशोर नें रुखाई सै जबाब दिया,
“मुझको मित्रों की तरफ सै सहायता मिलनें का विश्वास है परन्तु दैवयोग सै न मिली तो क्या इन्सालवन्ट होनें की दर ख्वास्त देनी पड़ेगी” लाला मदनमोहननें पूछा.
“अभी तो कुछ ज़रूरत नहीं मालूम होती परन्तु ऐसा विचार किया भी जाय तो आपके लेन देन और माल अस्बाब का कागज कहां तैयार है?" लाला ब्रजकिशोर नें जवाब दिया. और कचहरी जाने के लिये मदनमोहन सै रुख्सत होकर रवानें हुए.
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बिपत बराबर सुख नहीं जो थोरे दिन होय
लाला ब्रजकिशोर के गए पीछे मदनमोहन की फिर वही दशा होगई दिन पहाड सा मालूम होनें लगा खास कर डाक की बडी तला मली लगरही थी निदान राम, राम करके डाक का समय हुआ डाक आई. उस्मैं दो तीन चिट्ठी खैर कई अख़बार थे.
एक चिट्ठी आगरे के एक जौहरी की आई थी जिस्मैं जवाहरात की बिक्री बाबत लाला साहब के रुप लेनें थे और वह