पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३१३

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सुखकी परमावधि.
 

आपकी तरफ सै मुझसै क्षमा मांगी मुझे फ़ायदा पहुंचाकर प्रसन्न रखनें के लिये आप को सलाह दी और अन्तमैं मेरा आपका मेल करवाकर चुन्नीलाल और शिंभुदयाल दोनों अलग हो गए! उसी समय मेरठ सै जगजीवनदास आकर आपके घरकों को लिवा लेगया! मैंने जन्म भर आप सै रुपे का लालच नहीं किया था सो तीन दिन मैं ऐसे कठिन अवसर पर ठगोंकी तरह पाकटचेन, हीरेकी अंगूठी और बाली ले ली! एक छोटेसे लेनदारकी डिक्री मैं आपको इतनी देर यहां रहना पडा क्या इन बातों सै आपको कुछ आश्चर्य नहीं होता? इन्में कोई बात भेद की नहीं मालूम होती? "लाला ब्रजकिशोर ने पूछा.

"आपके कहने से इस मामले में इस्समय निस्संदेह बहुत सी बातें आश्चर्य की मालूम होती हैं और किसी, किसी बात का कुछ, कुछ मतलब भी समझ मैं आता है परन्तु सब बातोंके जोड़ तोड़ पूरे नहीं मिल्ते और मनभरनें के लायक कोई कारण समझ मैं नहीं आता यदि आप कृपा करके इनबातों का भेद समझा देंगे तो मैं आपका बडा उपकार मानूंगा" लाला मदनमोहन नें कहा.

"उपकार मान्नेंके लायक़ मुझ सै आपकी कौन्सी सेवा बन पड़ी है?" लाला ब्रजकिशोर नें जवाब दिया और अपनी बगल सै बहुत से काग़ज़ और एक पोटली निकाल कर लाला मदनमोहन के आगे रखदी. इन कागजों मैं मदनमोहन के लेनदारों की तरफ सै अन्दाज़न् पचास हजार रुपे के राजी नामे फारखती, और रसीद बगैरे थी और मिस्टर ब्राइट का फैसलनामा था जिस्मैं पेंतीस हजार पर उस्सै फैसला हुआ था और मिस्टर