पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षागुरु.
३०४
 


रसल की रकम उस्के देनें मैं लगादी थी, और मिस्टर ब्राइट की बेची हुई चोजोंमैं सै जो चीज फेरनी चाहें बराबर दामोंमैं फेर देनें की शर्त ठैर गई थी. उस पोटली मैं पन्द्रह बीस हजार का गहना था!

लाला मदनमोहन यह देखकर आश्चर्य सै थोडी देर कुछ न बोल सके फिर बडी कठिनाई सै केवल इतना कहा कि “मुझको अबतक जितनी आश्चर्य की बातें मालूम हुई थीं उन सब मैं यह बढ़कर है!"

"जितना असर आपके चित्तपर होना चाहिये था परमेश्वर की कृपा सै हो चुका इसलिये अब छिपानें की कुछ जरूरत नहीं मालूम होती” लाला ब्रजकिशोर कहनें लगे “आप किसी तरह का आश्चर्य न करैं. इन सब बातों का भेद यह है कि मैं ठेठसै आपके पिताके उपकार मैं बंधरहा हूं जब मैंने आपकी राह बिगडती देखी तो यथा शक्ति आपको सुधारनें का उपाय किया परन्तु वह सब बृथा गया. जब हरकिशोर के झगडे का हाल आपके मुखसै सुना तो मुझको प्रतीत हुआ कि अब रुपेकी तरी नहीं रही लोगों का विश्वास उठता जाता है और गहनें गांठ के भी ठिकानें लगनें की तैयारी है आपकी स्त्री बुद्धिमान होनेंपर भी गहनें के लिये आपका मन न बिगाडेगी लाचार होकर उसे मेरठ लेजानें के लिये जगजीवनदास को तार दिया और जब आप मेरे कहनें सै किसी तरह न समझे तो मैंनें पहलै बिभीषण और बिदुरजी के आचरण पर दृष्टि करके अलग हो बैठनें की इच्छा की परतु उससै चित्तको संतोष न हुआ तब मैं इस्बात के सोच विचार मैं बडी देर डूबा रहा तथापि स्वाभाविक झटका