पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३१५

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सुखकी परमावधि.
 


लगे बिना आपके सुधरनें की कोई रीत न दिखाई दी और सुधरे पीछे उस अनुभव सै लाभ उठानें का कोई सुगम मार्ग न मिला. अन्तमैं सुग्रीव को धमकी देकर रघुनाथजी जिस्तरह राहपर ले आये थे इसी तरह मुझको आपके सुधारनें की रुचि हुई और मैंनें आपके वास्तै आपही सै कुछ रुपया लेकर बचा रखनें का बिचार किया पर यह काम चुन्नीलाल के मिलाये बिना नहीं हो सक्ता था इसलिये तत्काल उस्के भाई (हीरालाल) को अपने हां नोकर रख लिया, परन्तु इस अवसर पर हरकिशोर की बदोलत अचानक यह बिपत्ति सिरपर आपडी, चुन्नीलाल आदिका होसला कितना था? तत्काल घबरा उठे और उन्सै मेल करनें के लिये फिर मुझको कुछ परिश्रम न करना पडा. वह सब रुपे के गुलाम थे जब यहां कुछ फायदे की सूरत न रही, उधर लोगों-नें आप पर अपनें लेनें की नालशैं कर दीं और आपकी तरफ सै जवाब दिही करनें मैं उन्की अपनी खायकी प्रगट होनें का भय हुआ तत्काल आपको छोड, छोड किनारे हो बैठे. मैनें आप सै जो कुछ इनाम पाया था उस्की कीमत सै यह सब फैसले घटा, घटा कर किये गए हैं अब दिसावर बालों का कुछ जुज्वी सा देना बाकी होगा सो दो, चार हजार मैं निबट जायगा परन्तु मेरे मनकी उमंग इस्समय कुछ नहीं निकली इस्सै मैं अत्यंत लजि्जत हूँँ" लाला ब्रजकिशोर ने कहा.

“आपने मेरे फायदे के लिये बिचारे लेनदारों को बृथा क्यों द़बाया" लाला मदनमोहन बोले.

"न मैंनें किसी को दबाया न धोका दिया न अपनें बस पडते कसर दी उन लोगोंनें बढा, बढा कर आप के नाम जो रकमैं