पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/३१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परीक्षागुरू.
३०६
 


लिख लीं थीं वही यथा शक्ति कम की गई हैं और वह भी उनकी प्रसन्नता से कम की गईं हैं" लाला ब्रजकिशोर ने अपना बचाव किया.

"इन सब बातों सै मैं आश्चर्य के समुद्र मैं डूबा जाता हूँँ। भला यह पोटली कैसी है?" लाला मदनमोहन में पूछा.

“आपकी हवालात की खबर सुनकर आपकी स्त्री यहां दौड आई थी और जिस्समय मैं आप सै बातें कर रहा था उस्समय उसी के आनें की खबर मुझको मिली थी मैंनें उसै बहत समझाया परन्तु वह आपकी प्रीति मैं ऐसी बाबली हो रही थी कि मेरे कहनें सै कुछ न समझी, उस्ने आपको हवालात सै छुडानें के लिये यह सब गहना जबरदस्ती मुझै दे दिया. वह उस्समय सै पांच फेरे यहां के कर चुकी है उस्नें सवेरे सै एक दाना मुँहमैं नहीं लिया उस्का रोना पलभर के लिये बन्द नहीं हुआ रोते, रोते उसकी आंखें सूज गईं हा! उस्की एक, एक बात याद करने सै कलेजा फटता है. और आप ऐसी सुपात्र स्त्री के पति होने से निस्संदेह बडे भाग्य शाली हो” लाला ब्रजकिशोर ने आँँसू भरकर कहा.

"भाई! जब उस्ने उसी समय तुमको यह गहना देदिया था तो फिर मेरे छुडानें मैं देर क्यों हुई?” लाला मदनमोहननें संदेह करके पूछा.

"एक तो दो एक लेनदारों का फैसला जबतक नहीं हुआ था और हरकिशोर की डिक्री का रुपया दाखिल कर दिया जाता तो, फिर उन्के घटने की कुछ आशा न थी, दूसरे आपके चित्तपर अपनी भूलों के भली भांति प्रतीत होजानें के लिये भी कुछ ढील