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मित्रमिलाप
 


है जो दस पांच रुपये की कसम खाने से बातों में हाथ आ सकती है!”


"हरकिशोर ने हरगोविंद की तरफ से आपका मन उछांटनें के लिये यह तद्वीर की हो तो भी कुछ आश्चर्य नहीं.” हरदयाल बोले "मैं जानता हूं कि हरकिशोर एक बड़ा-"


इतने में एकाएक कमरे का दरवाजा खुला और हरकिशोर भीतर दाखल हुआ. उसको देखते ही हरदयाल की जबान बंद हो गई और दोनों ने लजाकर सिर झुका लिया.


"पहले आप अपने शुभचिन्तकों के लिये सजा तजवीज कर लीजिये फिर मैं साठन मुलाहजें कराऊंगा. ऐसे वाहियात कामों के वास्ते इस ज़रूरी काम में हर्ज करना मुनासिब नहीं. हां लाला हरदयाल साहब क्या फरमा रहे थे? "हरकिशोर एक बड़ा-" क्या है? हरकिशोर ने कमरे में पांव रखते ही कहा.


"चलो दिल्लगी की बातें रहने दो लाओ, दिखलाओ तुम कैसी साठन लाए हो? हम अपनी निज की सलाह के वास्ते औरों का काम हर्ज नहीं किया चाहते” लाला हरदयाल ने पहली बात उड़ा कर कहा.


“मैं और नहीं हूँ पर अब आप चाहे जो बना दें मुझको अपनाअपना माल दिखाने में कुछ उज्र नहीं पर इतना विचार है कि आज कल सच्चे माल की निस्वत नकली या झूठे माल पर ज्याद: चमक-दमक मालूम होती है. मोतियों को देखिये चाहे मणियों को देखिये, कपड़ों को देखिये चाहे गोटे कि नारियों को देखिये जो सफ़ाई झूठे पर होगी वो सच्चे पर हरगिज न होगी इस लिये मैं डरता हूंँ