धर्म,अर्थ शुभ कहत कोउ काम, अर्थ कहिं आन
कहत धर्म कोउ अर्थ कोउ तीनहुँ मिल शुभ जान
मनुस्मृति.
“आप के कहनें मूजब किसी आदमी की बातों से उसका स्वभाव नहीं जाना जाता फिर उसका स्वभाव पहचानने के लिये क्या उपाय करें?" लाला मदनमोहन ने तर्क की.
"उपाय करने की कुछ जरूरत नहीं है, समय पाकर सब अपने आप खुल जाता है” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे. “मनुष्य के मन में ईश्वर ने अनेक प्रकार की वृत्ति उत्पन्न की है जिसमें परोकार की इच्छा, भक्ति और न्यायपरता धर्मप्रवृत्ति में गिनी जाती हैं. दृष्टांत और अनुमानादि के द्वारा उचित अनुचित कामों की विवेचना, पदार्थज्ञान और विचारशक्ति का नाम बुद्धिवृत्ति है. बिना विचारे अनेक बार के देखने सुनने आदि से जिस काम में मन की प्रवृत्ति हो, उसे आनुसंगिक प्रवृत्ति कहते हैं. काम, सन्तान स्नेह संग्रह करने की लालसा, जिज्ञासा और
धर्मार्थाकुच्येते श्रेय: कामर्थो धर्म एव च॥
अर्थ एवेह वा श्रेय स्विवर्ग इति तु स्थिति:॥