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भले बुरे की पहचान
 


आत्मसुख की अभिरुचि इत्यादि निकृष्ट प्रवृत्ति में शामिल हैं और इन सब के अविरोध में जो काम किया जाय वह ईश्वर के नियमानुसार समझा जाता है परन्तु किसी काम में दो वृत्तियों का विरोध किसी तरह न मिट सके तो वहां जरूरत के लायक आसंगिक प्रवृत्ति और निकृष्ट प्रवृत्ति को धर्मप्रवृत्ति और बुद्धि वृत्ति से दबा देना चाहिये जैसे श्रीरामचन्द्र जी ने राज पाट छोड कर बन में जाने से धर्म प्रवृत्ति को उत्तेजित किया था.”


“यह तो सवाल और जवाब हुआ मैंने आप से मनुष्य का स्वभाव पहचानने की राय पूछी थी आप बीच में मन की बृत्तियों का हाल कहनें लगे” लाला मदनमोहन ने कहा.

nh “इसी से आगे चल कर मनुष्य के स्वभाव पहचानने की रीति मालूम होगी।” “पर आप तो काम, सन्तानस्नेह आदि के अविरोध में भक्ति और परोपकारादि करने के लिये कहते हैं और शास्त्रों में काम, क्रोध,लोभ, मोह आदि की बारम्बार निन्दा की है फिर आप का कहना ईश्वर के नियमानुसार कैसे हो सकता है?” पंडित पुरुषोत्तमदास बीच में बोल उठे.


“मैं पहले कह चुका हूं कि जहाँ धर्मप्रवृत्ति और निकृष्ट प्रवृत्ति में विरोध हो वहां जरूरत के लायक धर्मप्रवृत्ति को प्रबल मानना चाहिये परंतु धर्मप्रवृत्ति और बुद्धिप्रवृत्ति का बचाव किये पीछे भी निकृष्टप्रवृत्ति का त्याग किया जायगा तो ईश्वर की यह रचना सर्वथा निरर्थक ठहरेगी पर ईश्वर का कोई काम निरर्थक नहीं है. मनुष्य निकृष्ट प्रवृत्ति होकर धर्म प्रवृत्ति और बुद्धि वृत्ति की रोक नहीं मानता इसी से शास्त्र में बार-