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परीक्षा गुरु
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“मैंनें केलीप्स के दृष्टांत में पिछले कामों से पहली बातों का भेद खोल कर उसका निज स्वभाव बता दिया था इसी तरह समय पाकर हर आदमी के कामों से मन की वृत्तियों पर निगाह कर के उसकी भलाई बुराई पहचानने की राह बतलाई तो इससे पहली बातों से क्या विरोध हुआ?” लाला ब्रजकिशोर पूछने लगे.

"अच्छा! जब आप के निकट मनुष्य की परीक्षा बहुत दिनों में उसके कामों से हो सकती है तो पहले कैसा बरताव रखें? क्या उसकी परीक्षा न हो जब तक उसको अपने पास न आने दें?” लाला मदनमोहन ने पूछा.

“नहीं, केवल संदेह से किसी को बुरा समझना, अथवा किसी का अपमान करना सर्वथा अनुचित है परंतु किसी की झूठी बातों में आकर ठगा जाना भी मूर्खता से खाली नहीं.” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे महाभारत में कहा है "मन न भरे पतियाहु जिन पतियायेहु अति नाहि॥ भेदी सों भय होत ही जर उखरे छिन माहिं।" इसका कारण जब तक मनुष्य की परीक्षा न हो साधारण बातों में उसके जाहिरी बरताव पर दृष्टि रखनी चाहिये. परंतु जोखों के काम में उसे सावधान रहना चाहिये उसका दोष प्रगट होने पर उसको छोड़ने में संकोच न हो इस लिये अपना भेदी बना कर, उसका अहसान उठाकर, अथवा किसी तरह की लिखावट और जुबान से उसके बसवर्ती होकर अपनी स्वतंत्रता न खोवे यद्यपि किसी-किसी के विचार में


"न विश्वसैदविश्वस्ते विश्वस्ते नाति विश्वसेत्॥
विश्वासाद् भयमुत्पन्न सूलान्यपि निकृन्तति॥"