सूर्य की धूप में मिलकर अपने आप उसका तेज बढाने लगती है। इसी तरह बहुत उन्नति में साधारण उन्नति अपने आप मिल जाती है. जबतक दो मनुष्यों का अथवा दो देशों का बल बराबर रहता है कोई किसी को नहीं हरा सकता, परंतु जब एक उन्नतिशाली होता है,आकर्षण शक्ति के नियमानुसार दूसरे की समृद्धि अपने आप उसकी तरफ़ को खिंचने लगती है. देखिये जबतक हिन्दुस्तान में और देशों से बढकर मनुष्य के लिये वस्त्र और सब तरह के सुख की सामग्री तैयार होती थी, रक्षा के उपाय ठीक-ठीक बन रहे थे, हिन्दुस्तान का वैभव प्रतिदिन बढता जाता था परंतु जब से हिंन्दुस्तान का एक टूटा और देशों में उन्नति हुई बाफ और बिजली आदि कलों के द्वारा हिंदुस्तान की अपेक्षा थोड़े खर्च, थोड़ी मेंहनत और थोड़े समय में सब काम होनें लगा, हिन्दुस्तान की घटती के दिन आ गए. जब तक हिन्दुस्तान इन बातों में और
देशों की बराबर उन्नति न करेगा, यह घाटा कभी पूरा न होगा. हिन्दुस्तान की भूमि में ईश्वर की कृपा से उन्नति करने के लायक सब सामान बहुतायत से मौजूद हैं केवल नदियों के पानी ही से बहुत तरह की कलें चल सकती हैं परंतु हाथ हिलाये बिना अपने आप ग्रास मुख में नहीं जाता. नई-नई युक्तियों का उपयोग किये बिना काम नहीं चलता. पर इन बातों से मेरा यह मतलब हरगिज़ नहीं है कि पुरानी-पुरानी सब बातें बुरी और नई-नई सब बातें एकदम अच्छी समझ ली जायें. मैंने यह दृष्टांत केवल इस विचार से किया है कि अधिकार और व्यापारादि के कामों में कोई-कोई युक्ति किसी समय काम की होती है वह भी कालान्तर में पुरानी रीति भांत पलट जाने पर अथवा किसी और तरह
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सावधानी(होशियारी)