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परीक्षा गुरु
 


की सूधी राह से निकल आने पर अपने आप निरर्थक हो जाती है और संसार के सब कामों का संबन्ध परस्पर ऐसा मिला रहता है कि एक की उन्नति, अवनति का असर दूसरों पर तत्काल हो जाता है इस कारण एक सावधानी बिना मन की वृत्तियों के ठीक होने पर भी जमाने के पीछे रह जाने से कभी-कभी अपने आप अवनति हो जाती है और इन्हीं कारणों से कहीं-कहीं प्रकृति के विपरीत भाव दिखाई देता है।"

"इससे तो यह बात निकली की हिन्दुस्तान इस समय कोई सावधान नहीं है” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

“नहीं यह बात हरगिज नहीं है, परंतु सावधानी का फल प्रसंग के अनुसार अलग-अलग होता है" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “तुम अच्छी तरह विचार कर देखोगे तो मालूम हो जायगा कि हरेक समाज का मुखिया कोई निरा विद्वान् अथवा धनवान नहीं होता, बल्कि बहुधा सावधान मनुष्य होता है और जो खुशी बड़े-बड़े राजाओं को अपने बराबर वालों में प्रतिष्ठा लाभ से होती है वह एक ग़रीब से ग़रीब लकडहारे को भी अपने बराबर वालों में इज्जत मिलने से होती है और उन्नति का प्रसंग हो तो वह धीरे-धीरे उन्नति भी करता जाता है परंतु इन दोनों की उन्नति का फल बराबर नहीं होता क्योंकि दोनों को उन्नति करने के साधन एक-से नहीं मिलते. मनुष्य जिन कामों में सदैव लगा रहता है अथवा जिन बातों का बार-बार अनुभव करता है बहुधा उन्हीं कामों में उसकी बुद्धि दौड़ती है और किसी सावधान मनुष्य की बुद्धि किसी अनूठे कामों में दौडी भी तो उसे काम में लाने के लिये बहुत कर के मौका नहीं मिलता. देश की