“उनकी बातचीत में एक बड़ा ऐब यह था कि वह बीच में दूसरे को बोलने का समय बहुत कम देते थे जिससे उनकी बात अपने आप फीकी मालूम होने लगती थी” बाबू बैजनाथ ने कहा.
"क्या करें? वह वकील हैं और उनकी जीविका इन्हीं बातों से है” हकीम अहमदहुसैन बोले.
“उन पर क्या है अपना-अपना काम बनाने में सब ही एक-से दिखाई देते हैं” पंडित पुरुषोत्तमदास ने कहा.
“देखिये सवेरे वह कांच की खरीदारी पर इतना झगड़ा करते थे परंतु मन में कायल हो गए इसलिए इस समय उनका नाम भी न लिया” मुन्शी चुन्नीलाल ने याद दिलाई.
“हां अच्छी याद दिलाई, तुम तीसरे पहर मिस्टर ब्राइट के पास गये थे? काचोंकी कीमत क्या ठहरी?" लाला मदनमोहन ने शिंभूदयाल से पूछा.
"आज मदरसे से आने में देर हो गई इसलिए नहीं जा सका।" मास्टर शिंभूदयाल ने जवाब दिया, परंतु यह उसकी बनावट थी। असल में मिस्टर ब्राइट ने लाला मदनमोहन का भेद जानने के लिये सौदा अटका रखा था.
"मिस्टर रसल को दस हजार रुपये भेजने हैं, उनका कुछ बंदोबस्त हो गया?” मुन्शी चुन्नीलाल ने पूछा.
“हां लाला जवाहरलाल से कह दिया है परंतु मास्टर साहब भी तो बंदोबस्त करने कहते थे इन्होंने क्या किया?" लाला मदनमोहन ने उलट कर पूछा.
"मैंने एक-दो जगह चर्चा की है पर अबतक किसी के पकावट नहीं हुई” मास्टर शिंभूदयाल में जवाब दिया.