पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/६५

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सबमें हां(!)
 

"इसमें कुछ योग विद्या की कला मालूम होती है.”* इतनी बात कहकर पंडित पुरुषोत्तमदास चुप होते थे परंतु लोगों को मुस्कराते देखकर अपनी भूल सुधारने के लिये झट पट बोल उठे कि “कदाचित् योग विद्या न होगी तो तार भीतर से पोला होगा जिसमें होकर आवाज़ जाती होगी या उसके भीतर चिट्ठी पहुँचाने के लिये डोर बंध रही होगी."

“क्यों दयालु बैलून कैसा होता है?” बाबू बैजनाथ ने पूछा.

“हम सब बातें जानते हैं, परंतु तुम हमारी परीक्षा लेने के वास्ते पूछते हो इसलिए हम कुछ नहीं बताते" पंडितजी ने अपना पीछा छुड़ाने के लिये कहा. परंतु शिंभूदयाल ने सब को जताकर झूठे छिपाव से इशारे में पंडितजी को उड़ने की चीज बताई. इसपर पंडितजी तत्काल बोल उठे "हमको परीक्षा देने की क्या जरूरत है? परंतु इस समय न बतावेंगे तो लोग बहाना समझेंगे. बैलून पतंग को कहते हैं.”

“वाह, वा, वाह! पंडितजी ने तो हद कर दी इस कलि काल में ऐसी विद्या किसी को कहां आ सकती है!” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.

“हां पंडितजी महाराज! हुलक किस जानवर को कहते हैं?” हकीम अहमदहुसैन ने नया नाम बना कर पूछा.

"एक चौपाया है” मुन्शी चुन्नीलाल ने बहुत धीरे आवाज़ से पंडितजी को सुना कर शिंभूदयाल के कान में कहा.

"और बिना परों के उड़ता भी तो है" मास्टर शिंभूदयाल ने उसी तरह चुन्नीलाल को जवाब दिया.


  • गैस से भरा हुआ उड़ने का गुबारा