पृष्ठ:परीक्षा गुरु.djvu/६७

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सबमें हां(!)
 

आखिर यह दिल्लगी पूरी हुई तब बाबू बैजनाथ लाला मदनमोहन को अलग ले जा कर कहने लगे “मैंने सुना है कि लाला ब्रजकिशोर दो-चार आदमियों को पक्का कर के यहां नए सिरे से कालिज स्थापना करने के लिये कुछ उद्योग कर रहे हैं यद्यपि सब लोगों के निरुत्साह से ब्रजकिशोर के कृतकार्य होने की कुछ आशा नहीं है तथापि लोगों को देशोपकारी बातों में अपनी रुचि दिखाने और अग्रसर बनने के लिये आप इसमें ज़रूर शामिल हो जायें अखबारों में धूम मैं मचा दूँगा. यह समय कोरी बातों में नाम निकालने का आ गया है क्योंकि ब्रजकिशोर नामवरी नहीं चाहते इसी लिये मैं चलकर आपको चेताने के लिये इस समय आपके पास आया था."

आप की बड़ी मेंहरबानी हुई मैं आपके उपकार का बदला किसी तरह नहीं दे सकता. किसी ने सच कहा है “हितहि परायोआपन आपनो अहित अपनपोजाय॥ वनकी औषधि प्रिय लगत तनको दुख न सुहाय॥"* ऐसा हितकारी उपदेश आपके बिना और कौन दे सकता है” लाला मदनमोहन ने बड़ी प्रीति से उनका हाथ पकडकर कहा.

और इसी तरह अनेक प्रकार की बातों में बहुत रात चली

गई तब सब लोग रुख़सत होकर अपने-अपने घर गए.


  • परोपि हितवान् बन्धुर्बंधु रप्यहित: पर:
    अहितो देहजो व्यधि हिमारण्यमोषधम्.