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परीक्षा गुरु
६०
 
प्रकरण ९.

सभासद.

धर्मशास्त्र पढ़, वेद पढ़ दुर्जन सुधरे नाहिं.
गो पय मीठी प्रकृति ते, प्रकृति प्रबल सब माहिं.+

हितोपदेश,

इस समय मदनमोहन के वृत्तान्त लिखने से अवकाश पाकर हम थोड़ा सा हाल लाला मदनमोहन के सभासदों का पाठक गण को विदित करत हैं,इनमें सबसे पहले मुंशी चुन्नीलाल स्मरण योग्य हैं.

मुंशी चुन्नीलाल प्रथम ब्रजकिशोर के यहाँ दस रुपये महीने का नौकर था.उन्होंने इसको कुछ-कुछ लिखना पढ़ना सिखाया था, उन्हीं की संगति में रहने से इसे कुछ सभाचातुरी आ गई थी, उन्हीं के कारण मदनमोहन से इसकी जान पहचान हुई थी. परन्तु इसके स्वभाव में चालाकी ठेठ से था, इसका मन लिखने पढ़ने में कम लगता था पर इसने बड़ी-बड़ी पुस्तकों में से कुछ-कुछ बातें ऐसी याद कर रखी थीं कि नए आदमी के सामने झड़ बांध देता था. स्वार्थपरता के सिवाय परोपकार की रुचि नाम को न थी पर जबानी जमा खर्च करने और कागज के घोड़े


+ न धर्मशास्त्रं पठतीति कारणम् न चापि वेदाध्ययनं दुरात्मन:। स्वभाव एवात्र तथातिरिच्यते यथा प्रकृत्या मधुरं गवां पय:।