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परीक्षागुरु.
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कर आदि रस का रसिक बनाने लगा और आप भी उसके साथ फूल के कीडे़ की तरह चैन करने लगा. परंतु यह सब बातें मदनमोहन के पिता के भय से गुप्त होती थीं और इसी से शिंभूदयाल आदि का बहुत फायदा था वह पहाड़ी आदमियों की तरह टेढ़ी राह में अच्छी तरह चल सक्ता था परंतु सम- भूमि पर चलने की उसकी आदत न थी जब चुन्नीलाल मदनमोहन के पास आया कुछ दिन इन दोनों की बड़ी खटपट रही परंतु अंत में दोनों अपना हानि लाभ समझ कर गरम लोहे की तरह आपस में मिल गए. शिंभूदयाल को मदनमोहन ने सिफारश कर के मदरसे में नौकर रखा दिया था इस कारण वह मदनमोहन की अहसानमंदी के बहाने से हर वक्त वहां रहता था.


पंडित पुरुषोत्तमदास भी बचपन से लाला मदनमोहन के पास आते जाते थे इनको लाला मदनमोहन के यहां से इनके स्वरूपानुरूप अच्छा लाभ हो जाता था परंतु इनके मन में औरों की डाह बडी प्रबल थी. लोगों को धनवान, प्रतापवान, विद्वान, बुद्धिमान, सुन्दर, तरुण, सुखी और कृतिकार्य देखकर इन्हें बड़ा खेद होता था. वह यशवान मनुष्यों से सदा शत्रुता रखते थे औरों को अपने सुख लाभ का उद्योग करते देखकर कुढ़ जाते थे अपने दुखिया चित्त को धैर्य देने के लिये अच्छे-अच्छे मनुष्यों के छोटे-छोटे दोष ढूँढा करते थे. किसी के यश में किसी तरह का कलंक लग जाने से यह बड़े प्रसन्न होते थे. पापी दुर्योधन की तरह सब संसार के विनाश होने में