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परीक्षागुरु
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भोजन न करने और नुक्सान के डर से व्यापार न करने' की कहावत यहां प्रत्यक्ष दिखाई देती थी. इसको सब कामों में पुरानी चाल पसंद थी.


बाबू बैजनाथ ईस्ट इन्डियन रेलवे कंपनी में नौकर था अंग्रेजी अच्छी पढ़ा था. यूरोप के सुधरे हुए विचारों को जानता था, परंतु स्वार्थपरता ने इसके सब गुण ढँक रखे थे. विद्या थी पर उसके अनुसार व्यवहार न था. "हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और ” इसके निर्वाह लायक इस समय बहुत अच्छा प्रबंध हो रहा था परंतु एक संतोष बिना इसके जी को जरा भी सुख न था. लाभ लोभ बढ़ता जाता था और समुद्र की तरह इसकी तृष्णा अपार थी. लोभ से धर्म-अधर्म का कुछ विचार न रहता था. बचपन में इसको इल्म मुसलिम तहरीरउल्लेक्स और जब्रमुकाबले वगैरह के सीखने में परीक्षा के भय से बहुत परिश्रम करना पड़ा था परंतु इसके मन में धर्म प्रवृत्ति उत्तेजित करने के लिये धर्म नीति आदि असरकारक उपदेश अथवा देशोन्नति के हेतु बाफ़ और बिजली आदि की शक्ति, नई-नई कलों का भेद और पृथ्वी की पैदावार बढ़ाने के हेतु खेती बाड़ी की विद्या, अथवा स्वच्छंदता से अपना निर्वाह करने के लिये देश दशा के अनुसार जीविका करने की रीति और अर्थ विद्या, तंदुरुस्ती के लिये देह रक्षा तत्व द्रव्यादि की रक्षा और राजाज्ञा भंग के अपराध से बचने को राजाज्ञा का तात्पर्य अथवा, बड़े और बराबर वालों से यथायोग्य व्यवहार करने के लिये शिष्टाचार का उपदेश बहुत ही कम मिला था बल्कि नहीं मिलने के बराबर था । इसके