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सुखदु:ख
 


मेरे जान तो मनुष्य जिस बात को मन सै चाहता है उस्का पूरा होना ही सुख का कारण है और उस्मैं हर्ज पड़ने ही सै दुःख होता है" मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

"तो अनेक बार आदमी अनुचित काम कर के दु:ख मैं फंस जाता है और अपने किये पर पछताता है इस्का क्या कारण? असल बात यह है कि जिस्समय मनुष्य के मन मैं जो वृत्ति प्रबल होती है वह उसी के अनुसार काम किया चाहता है और दूरअंदेशी की सब बातों को सहसा भूल जाता है परंतु जब वो बेग घटता है तबियत ठिकानें आती है तो वो अपनी भूल का पछतावा करता है और न्याय वृत्ति प्रबल हुई तो सब के साम्हने अपनी भूल अंगीकार कर कै उस्के सुधारने का उद्योग करता है पर निकृष्ट प्रवृत्ति प्रबल हुई तो छल कर के उस्को छिपाया चाहता है अथवा अपनी भूल दूसरे के सिर रक्खा चाहता है और एक अपराध छिपाने के लिये दूसरा अपराध करता है परंतु अनुचित कर्म्म सै आत्मग्लानि और उचित कर्म्म सै आत्मप्रसाद हुए बिना सर्वथा नहीं रहता" लाला ब्रजकिशोर बोले.

"अपना मन मारने से किसी को खुशी क्यों कर हो सकती है?" लाला मदनमोहन आश्चर्य से कहने लगे.

"सब लोग चित्तका सन्तोष और सच्चा आनन्द प्राप्त करनें के लिये अनेक प्रकार के उपाय करते हैं परन्तु सब वृत्तियों के अविरोध सै धर्म्मप्रवृत्ति के अनुसार चलनेंवालों का जो सुख मिल्ता है वह और किसी तरह नहीं मिल सक्ता" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे "मनुस्मृति में लिखा है "जाको मन अरु वचन शुचि बिध सों रक्षित होय॥ अति दुर्लभ वेदान्त फल