अपना ईमान बेच डालेगा ? हिन्दू को अपने ईश्वर तक
पहुँचने के लिए किसी नबी, वली या पैग़म्बर की
जरूरत नहीं !
चारो पठानों ने कहा--काफ़िर ! काफ़िर !
खज़ाँ०--अगर तुम मुझे काफिर समझते हो, तो समझो। मैं अपने को तुमसे ज़्यादा खुदा-परस्त समझता हूँ। मैं उस धर्म को मानता हूँ, जिसकी बुनियाद अक्ल पर है। आदमी में अक्ल ही खुदा का नूर (प्रकाश) है और हमारा ईमान हमारी अक्ल ......
चारों पठानों के मुँह से निकला 'काफ़िर ! काफ़िर!' और
चारों तलवारें एक साथ ख़ज़ाँचन्द की गर्दन पर गिर पड़ी।
लाश ज़मीन पर फड़कने लगी। धर्मदास सिर झुकाये खड़ा
रहा। वह दिल में खुश था कि अब खज़ाँचन्द की सारी
सम्पत्ति उसके हाथ लगेगी और वह श्यामा के साथ सुख से
रहेगा ; पर विधाता को कुछ और ही मंजूर था। श्यामा
अब तक मर्माहत-सी खड़ी यह दृश्य देख रही थी। ज्यों
ही खज़ाँचन्द जमीन पर गिरा, वह झपटकर लाश के पास
आई और उसे गोद में लेकर आँचल से रक्त प्रवाह को
रोकने की चेष्टा करने लगी। उसके सारे कपड़े खून से तर
हो गये। उसने बड़ी सुन्दर बेल-बूटोंवाली साड़ियाँ पहनी