पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/२७

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विचारों में लाना छोड़ दिया है। पुरुषों के अंडरवेअर के विज्ञापन देखता नहीं। फिल्मस देखना बंद कर दिया है। पढ़ाई में मन लगा रहा हूँ। देखते है इससे क्या होता है। जो होना था, वही हुआ। मसलन कुछ भी नहीं हो पाया। इतनी दृढता से किया हुआ मन का नियंत्रण कोई भी फायदा न दे सका। इम्तिहान हो गए। कम-से-कम पास हो जाऊँ तो भगवान की मेहेरबानी। एक साल बेकार तो नहीं जाएगा। आज बीसीएल-ब्रिटिश कौन्सिल लायब्ररी में नाम दाखिल कराया। पूरा दिन वहीं पे गुजारा। मेडिकल, सायकिअॅट्री सेक्शन से किताबें पढ़ी। आसपास कोई न था, तब 'होमोसेक्सश्युअॅलीटी' पर लिखे सेक्शन पढ़े। किताबों में इसे 'डिसऑर्डर' कहा है। मेरी भावना 'डिसऑर्डर'? क्यों? इतने सच्चे दिल से मैं प्रेम कर रहा हूँ तो वह प्रेम विकृत कैसे हो सकता है? अर्थात किताबों में लिखा है, तो मेरा प्रेम विकृत ही होगा। बहुत वर्षों को बाद समझ में आ गया की, पहले समलिंगी होना सायकीअट्री में डिसऑर्डर ही माना जाता था लेकिन अब यह दृष्टिकोण बदल गया है। स.पी.स. मतलब 'अमेरिकन सायकिअॅट्रक असोसिएशन' ने मान लिया है की समलिंगी होना कोई बीमारी नहीं है। और डिसऑर्डर्स की उनकी लिस्ट में से इसे निकाल दिया है। "Homosexuality per se implies no impairment in judgment, stability, reliability' or general social or vocational capabilities, therefore, it he resolved that the American Psychiatric Association deplores all public and private discrimination against homosextuals in such areas as employment, housing, public accommodation and licensing and declares that no burden of proof of such judgement, capacity, or reliability shall be placed on homosexuals greater than that imposed on any other persons ....." १८ ... ...