पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/५५

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रास्ते में ढेर सारे विचारों ने घेर लिया। मालूम था, ऐसे चैन नहीं आएगा। रिजल्ट का भंवरा मन में बार-बार भुनभुनाता रहेगा। उससे अच्छा है कर लूँ एकही बार आर या पार। कम-से-कम इस तरह अंधेरे में तो न रहुँगा। और अगर मुझे छुत लग ही गई होगी, तो मेरी तरफ से और किसी को इस त्रासदी का शिकार न बनना पड़े। क्लिनीक की दिशा में फिरसे चल पड़ा। सीढ़ी चढना मुश्किल हो रहा था। पाँव में कंपकंपी। आज भीड़ भी बहुत थी। लोगों को देखते देर तक बेंच पर बैठा रहा। इनमें से कितने लोगों को छुत लगी होगी? उन्हें क्या लग रहा होगा? क्या उनकी भावनाएँ मेरी जैसी ही होगी? अनजाने में नाखून चबाते बैठा था। आजकल यह एक आदत पड़ गई है-खून निकलने तक, दर्द होनेतक नाखून चबाने की। र मुझे अंदर बुलाया गया। मैंने टोकन दिखाया। काउन्सेलर महिलाने मुझे बताया कि मुझे छूत नहीं लगी है। मुझे एच.आय.व्ही. नहीं हुआ है। क्षण में जैसे मेरी दुनिया बदल गई। मन हल्का हो गया। वो महिला आगे क्या कह रही थी, उसपर ध्यान ही नहीं रहा। शायद मेरी स्थिति वो जान गई। दो मिनटतक वह चूप रही। मेरे होश थोड़े ठिकाने आते बोलने लगी। फिर से कंडोम की रट लगाई। मुझे चार-पाँच कँडोम दिए। नरेन को अब मिलना चाहिए। उसकी बहुत मदद हुई है मुझे। आज शाम नरेन से मिला। बताया कि मेरे उस दोस्त ने गाड़ीखाना क्लिनीक से दवाई ली। अब सब ठीक है। उसने तुझे धन्यवाद कहने के लिए कहा है। मैं एक बार तुम्हारे साथ तुम्हारे ऑफिस में आना चाहता हूँ। और एक बात, मेरा नाम असल में रोहित है। पर ऑफिस में नहीं बताऊँगा। वहाँ तुम मुझे राहुल करके ही पुकारना। अब मुझे नरेन पर यकीन हो गया है। वो मेरा सहारा बन गया है। उसने मेरी मदद की। मैंने माँग करने पर भी मुझसे सेक्स नहीं किया। यह बातें मेरे मन को छू गई है। अब उसके लिए मेरे मनमें सिर्फ आदर की भावना है। ईर्ष्या, जलन सब धुल गई है। हम कितने मतलबी होते है ना? आज नरेन के साथ ऑफिस गया। कोई पहचान लेगा, यह डर मन में था। वहाँ के एक 'बीफ्रेंडर' के साथ नरेन ने मेरी पहचान कराई। उसका नाम है राजेश। दोनों को मिलाने के बाद नरेन वहाँ से कहीं निकल गया। मैं राजेश के साथ क्या बोलूँ, समझ नहीं आ रहा था। उसकी नजर टालता रहा। वह भी 'गे' है। मैंने बताया कि मैं 'बायसेक्शुअल' हूँ। > ...४६ ...