पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/५७

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, आज राजेश ने मुझे एक सायकिअॅट्रिस्ट से मिलाया। उनसे मेरी बात हुई। वह डॉक्टर बहुत भलामानस है, उदारमतवादी है। मुझ में कुछ भी दोष नहीं, यह बात उन्होंने मुझे बताई। काश ऐसे डॉक्टर पहले ही मिल जाते तो इतनी बड़ी लंबी त्रासदी से बच जाता। आजकल बड़ी जोरों की चर्चा होरही है 'फायर' फिल्म की। नरेन और आमिषा के साथ मैंने यह फिल्म आते ही देखी थी। रुढ़िवादियों ने इतना बवंडर खड़ा कर दिया, थिएटर में तोड़फोड़ की। आखिर फिल्म थिएटर से निकाल दी गई। कल चाचाजी आए थे। फायर की बात छेड़ी गई। उनका कॉमेंट था, 'ऐसी बीभत्स फिल्में सेन्सॉर पास कैसे करता है।' मैं इस पर बहस करना चाहता था लेकिन अब भी हिम्मत जुटा नहीं सकता। पिताजी उनसे सहमत थे। लेकिन मेरे कारण बहुत बेचैन हो गए थे। माँ ने विषय ही बदल दिया। कभी भी, का हाँ भी, किसी भी मुद्दे पर एक न होनेवाले हिंदू, मुस्लिम, ईसाई रुढ़िवादी इस विषय पर सहमत हो जाते है। मराठी, उर्दू अखबारों ने फायर के बारे में जो जी चाहा लिख डाला है। सबका मत एक जैसा। समलैंगिकता हमारे देश में थी ही नहीं; पाश्चात्यों की यह देन हैं; इन संबंधों से संतति नहीं पैदा होती इसलिए यह संबंध गैर है; वैसे हमारे सामने इससे भी बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़े है, इसलिए बेवक्त इस समस्या को लेकर लोगों को उकसाने की जरुरत नहीं थी, वगैरा। कुछ अंग्रेजी अखबार हैं-जिन्होंने उदारवादी रवैया अपनाया है। ट्रस्ट में मैंने जो कुछ पढ़ा है, उससे मुझे इतना तो मालूम हो गया है कि, यह जो बवंडर खड़ा करनेवाले लोग है, उन्हें इस विषय की बिलकुल मालूमात नहीं हैं। सिर्फ इस विषय का फायदा लेकर, उसकी आड़ में प्रसिदधि की लालच रखते है। उस फिल्म में दो महिलाओं के बीच का सेक्स दिखाया है। फिरभी यह फिल्म लेस्बियानिझम विषय पर नहीं है। उनको पुरुषों से शरीरसुख नहीं मिलने के कारण, वो दोनों औरतें आपस में संभोग करती है। लेस्बियन स्त्रियाँ भावनिक और शारीरिक दृष्टी से एक दूसरी से प्यार करती है। उन्हे पुरुषों की जरुरतही नहीं होती। बाद में नरेन ने एक चार्ट बना के. मुझे सब समझाया। ४८...