पृष्ठ:पार्टनर(hindi).pdf/६०

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मैंने पहली बार अनुभव किया कि किताबें पढ़ने से जितना असर नहीं होता उतना इस तरह की एक फिल्म देखने से होता है। इसके बराबर विपरीत, होमोफोबिक (समलिंगी द्वेष्टे) सिनेमा और साहित्य समलैंगिक लोगों के बारेमें नफरत, अज्ञान, गलत विचार पहुँचाते हैं। पहली बार मैंने एक नई दुनिया देखी, जो अंधकारमय नहीं थी। अभी तक यही बार-बार पढ़ने में आया था, कि समलैंगिक लोग संख्या में कम होते है और भारत में तो करीब न के बराबर है। और यहाँ, फिल्म देखने पूरे अस्सी लड़के इकट्ठा देखकर मेरा मन उभर आया। मैं अकेला नहीं जो ऐसा हूँ, यहाँ बहुत सारे मेरे जैसे है। उन्हें इकट्ठा देखकर सबको गले लगाने को मन कर रहा था। समाज में चारों और हमारे जैसे होते हैं। यह दुनिया आसानी से लोगोंके नजर नहीं आती। दुनिया में औसतन तीन प्रतिशत पुरुष और एक प्रतिशत औरते समलिंगी होते हैं। मतलब समझ लीजिए हमारी आबादी सौ करोड़ है तो उसमें चार करोड़ लोग समलिंगी है। उभयलिंगी लोगों की गिनती इसमें नहीं है। अब काम करने का हौसला बढ़ गया है। घर में रोज के झगडे बंद हो गए हैं। क्योंकि अब वो जो कुछ बोलते है उसे मैं इस कान से सुनता हूँ, उस कान से छोड़ देता हूँ। उनकी तरफ ध्यान ही नहीं देता। अब मेरा खाली वक्त ट्रस्ट में जाकर पढ़ने में बीतता है। वहाँ के लड़कों से बातें करता हूँ। मुझ में कुछ फर्क आएगा, इसकी आशा अब घरवालों ने छोड़ दी है और मैं आशा करता हूँ कि, अब मुझे वो मेरी जिंदगी जीने देंगे। अगर उन्होंने मुझे स्वीकार लिया तो सोने पे सुहागा। लेकिन इतनी जल्दी यह मुमकिन नहीं लगता। मुझे कई नए दोस्त मिले हैं। उनकी पहचान ट्रस्ट में हुई। साहिल शादीशुदा है, ब्रायन मेरी ही उमर का है। शेखर पचास का, शर्मिला तीस साल की है और आमिषा जो है, वह अठावन साल की है। प्रतीक उन्नीस का, हरभजन पच्चीस साल का है। आज हम सब मिलकर खाना खाने बाहर गए थे। लड़कियाँ साथ में नहीं थी, हम लड़के ही गए थे। बहुत मजा आया। होटल में हमें सर्व्ह करनेवाला वेटर दिखने । में सुंदर था। खाने से हमारा ध्यान उड़ गया-सबकी नजर उसीपर टिकी थी। हमने उसे बीस पर्सेट टिप दे दी। यह भी तय कर चुके हैं, हम अगली बार यहीं खाना खाने आएँगे। ... ५१ ...